साल 2007, जून का महीना और 15 तारीख। शाम के 5 बज रहे थे। करनाल से करीब 20 किलोमीटर पहले सफेद स्कॉर्पियो अचानक हरियाणा रोडवेज की एक बस के सामने आकर रुकी। उसमें से 8-10 लोग उतरे और तेजी से बस में चढ़ गए। उन्होंने बस से मनोज नाम के लड़के और उसके साथ बैठी
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लड़के को रस्सी से स्कॉर्पियो के पीछे बांधकर करीब 3 किलोमीटर तक घसीटा। तपती डामर रोड पर लड़के की खाल उधड़ गई। तभी स्कॉर्पियो कैथल के करोड़ा गांव के पास एक खेत में रुकी। वहां स्कॉर्पियों से उतरे 24-25 साल के लड़के ने मनोज के गुप्तांग में डंडा डाल दिया। एक तेज चीख से उसकी सांसें थम गईं।
इसके बाद उसी लड़के ने लड़की का मुंह दबाकर जबरन उसे सल्फास खिला दी। इन हमलावरों ने दोनों की लाश बोरियों में भरकर कुछ दूर नहर में फेंक दी। एक हफ्ते बाद करीब 100 किलोमीटर दूर हिसार के नारनौंद इलाके में नहर किनारे दोनों सड़ी-गली लाशें मिलीं। पुलिस ने पोस्टमॉर्टम करवाया। कुछ दिनों बाद लावारिस समझकर दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘मृत्युदंड’ में करनाल डबल मर्डर केस के पार्ट-1 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-2 में आगे की कहानी…
मनोज तो मर चुका था, लेकिन इससे अनजान उसकी मां चंद्रपति और बहन सीमा घर पर उसका इंतजार कर रहे थे। मनोज के पिता फौज में थे, 1991 में ही बीमारी की वजह से उनकी मौत हो चुकी थी। कभी मां तो कभी बहन, शाम पांच बजे से ही मनोज को फोन कर रहे थे। उधर से हर बार यही सुनाई देता- फोन स्विच ऑफ है।
देर रात मां चंद्रपति, मनोज की बहन सीमा से बोली, ‘कुछ ठीक नहीं लग रहा है। मनोज ने तो कहा था कि दिल्ली की बस में बैठ गया है। रात में फोन करने को भी कहा था।’
इसी उधेड़-बुन में रात गुजर गई…
सूरज उगते ही चंद्रपति और सीमा, मनोज के दोस्त और रिश्तेदारों को बारी-बारी से फोन करने लगे। एक ही सवाल ‘मनोज आया था क्या?’ हर जगह से एक ही जवाब ‘नहीं’।
ऐसे ही पूरा दिन गुजर गया। अगले दिन चंद्रपति किसी काम से अपने घर से निकली, तभी एक गांववाले ने आकर उससे धीरे से कहा, ‘कुछ लोग कह रहे हैं कि मनोज को मार दिया है।’
‘मार दिया।’ सुनते ही चंद्रपति दहाड़ें मारकर रोने लगी। बदहवास सी घर पहुंची। सीमा से बोली-‘लोग कह रहे हैं कि मेरे मनोज को मार दिया।’
मनोज की मां चंद्रपति रोते हुए अपने घर पहुंची और सीमा से कहा मेरे मनोज को मार दिया है। स्केच: संदीप पाल।
चंद्रपति और सीमा भागे-भागे कैथल में अपने गांव से 15 किलोमीटर दूर राजौंद थाना पहुंचीं। मां ने थानेदार से कहा- ‘साहब, मेरा बेटा तीन दिन से गायब है। लोग कह रहे हैं कि उसे मार दिया। आप कुछ पता करिए।’
थानेदार डांटते हुए बोला- ‘तुम्हारा बेटा क्या हमें बताकर गया है। जाओ यहां से। खुद ही ढूंढो उसे।’
रोते-बिलखते चंद्रपति और सीमा घर लौट आए। सीमा ने कुछ रिश्तेदारों को फोन किया और उन्हें साथ लेकर मनोज को ढूंढने निकल गई। कुरुक्षेत्र के पिपली, कैथल, करनाल, नीलोखेड़ी हर जगह मनोज को ढूंढा। उसके जानने वालों से पूछा। पर उसका पता नहीं चला।
अब दोनों करनाल के बुटाना थाना पहुंचे। इसी थाने में वह टोल नाका आता है, जहां से मनोज को स्कॉर्पियो में बिठाया गया था।
ASI धर्मपाल ने रोती हुई चंद्रपति से पूछा, ‘क्या हुआ। इतनी घबराई हुई क्यों हो? कहां की रहने वाली हो।’
चंद्रपति बोली, ‘साहब, कैथल की हूं। रिपोर्ट लिखवानी है। मेरा बेटा 4 दिनों से गायब है। फोन भी नहीं लग रहा।'
‘4 दिनों से, अभी तक कहां थी। कैथल की रहने वाली हो, तो करनाल में रिपोर्ट लिखाने क्यों आई।’ ASI धर्मपाल ने चंद्रपति से अकड़कर पूछा।
सिसकती चंद्रपति ने जवाब दिया, ‘15 जून को शाम 4 बजे बेटे ने फोन किया। वह कुरुक्षेत्र के पिपली बस स्टैंड पर था। वहां से करनाल और फिर करनाल से दिल्ली जाने वाला था, लेकिन एक घंटे बाद ही उसका फोन बंद हो गया। अब गांववाले कह रहे हैं कि मनोज को लड़की के घरवालों ने मार दिया।’
ASI धर्मपाल ने चौंकते हुए पूछा, ‘लड़की…कौन लड़की?’
चंद्रपति बोली, ‘साहब… बबली नाम है उसका, गांव की ही है, दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं।’
थाने के SHO सुभाष चंदर भी वहीं थे। उन्होंने ने ASI धर्मपाल से कहा, ‘उस शाम पास के टोल नाके से एक फोन आया था। कुछ लोग एक लड़के और लड़की को किडनैप करके पीटते हुए कैथल की तरफ ले जा रहे थे। एक वायरलेस मैसेज भी सभी थानों में फ्लैश हुआ था।’
इतना सुनते ही रोती-सिसकती सीमा बोल पड़ी, ‘मेरे भाई को ढूंढ दो।’
SHO चंदर उसी वक्त चंद्रपति और सीमा को लेकर नीलोखेड़ी टोल नाके के पास पहुंच गए। SHO ने कड़क आवाज में वहां मौजूद लोगों से पूछा, ‘कुछ रोज पहले यहां से किसी ने पुलिस को फोन किया था?’
डरते-डरते टोल के ठेकेदार कुलदीप ने कहा, ‘साहब, मैंने ही फोन किया था। 8-10 लोग थे। एक लड़के को घसीटते हुए ले जा रहे थे। कैथल की तरफ ले जा रहे थे। अंदर एक लड़की भी थी। मैंने गाड़ी का नंबर लिख लिया था।’
सीमा ने पर्स से मनोज का फोटो निकालकर कुलदीप को दिखाया। ‘हां, यही लड़का था। मेरे पास एक जूता भी है। स्कॉर्पियो के निकल जाने के बाद सड़क किनारे मिला था।’
कुलदीप भागता हुआ टोल नाके के एक किनारे गया। झोले से जूता निकाल कर ले आया। चंद्रपति और सीमा रोते-रोते कहने लगे, ‘मेरे मनोज का जूता…कहां गया मेरा मनोज, उन लोगों ने क्या किया मनोज के साथ। वो जिंदा भी है या नहीं…।’ दोनों, उस जूते को चूमने लगीं। माथे से लगाने लगीं। चंद्रपति बेहोश हो गई।
कुलदीप ने चंद्रपति और सीमा को मनोज का जूता दिखाया। स्केच: संदीप पाल
SHO सुभाष ने कुलदीप से पूछताछ की। 15 जून की शाम की टोल की डायरी देखी। इसके बाद चंद्रपति, सीमा को लेकर थाने चले आए।
थोड़ी देर SHO कुछ सोचने लगा, फिर अचानक उसकी टोन बदल गई, ‘देखो ताई, यह मामला हमारे थाने का नहीं है। कैथल की रहने वाली हो, वहीं पर रिपोर्ट दर्ज कराओ।’ उसने डांटकर दोनों को भगा दिया। अब दोनों रोते-बिलखते DSP करनाल के दफ्तर पहुंचे।
चंद्रपति अब टूट चुकी थी। DSP के सामने वह चीख-चीख कर रोने लगी। सीमा ने किसी तरह उसे संभाला।
चंद्रपति ने कहानी बतानी शुरू की, ‘कैथल के करोड़ा गांव की हूं। चार बच्चे हैं। मनोज सबसे बड़ा है।
मनोज ने गांव में ही बिजली के सामान की दुकान खोली थी। गांव की ही बबली कभी-कभी दुकान पर आती थी। धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे।
दोनों छुपकर घंटों फोन पर बातें करते। एक-दो बार मैंने मनोज को टोका भी था, गांव की लड़की है, उसके घरवालों को पता चला तो आफत हो जाएगी। दरअसल, बबली भी जाट है, लेकिन गोत्र भी एक ही है, बनवाला। गांव, परिवार कोई भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होता।
फिर भी मनोज की जिद पर मैं बबली का हाथ मांगने घर गई थी, लेकिन उसकी मां और भाई ने मुझे गाली देकर भगा दिया था।
6 अप्रैल को मनोज ये बोलकर घर से गया कि ‘एग्जाम है, शाम तक घर आएगा’ लेकिन उस दिन से घर नहीं लौटा। अगले दिन मनोज ने फोन करके बताया कि उसने चंडीगढ़ में हाईकोर्ट में बबली से शादी कर ली है।
इधर, बबली के घरवाले मेरे दरवाजे पर आकर धमकी देने लगे- ‘ मनोज को वापस बुलाओ, नहीं तो तुम्हारी दोनों बेटियों को भी नहीं छोड़ेंगे।
26 अप्रैल को बबली की मां ने राजौंद थाने में मनोज और हम सब पर किडनैपिंग की रिपोर्ट दर्ज करा दी। पुलिस रोज मेरे घर आने लगी। हर बार एक ही बात कहती, तुम्हें तो पता ही होगा मनोज कहां है। नहीं बुलाओगे तो सबको जेल में डाल देंगे।'
चंद्रपति ने बताया, 'गांववालों ने एकतरफा पंचायत बुला ली और मनोज को देखते ही मार देने का फरमान सुनाया। हमारे पूरे घर का हुक्का-पानी भी बंद कर दिया। फैसला न मानने वालों को 25 हजार रुपए के जुर्माने का ऐलान कर दिया।'
खाप पंचायत में फरमान सुनाया गया कि मनोज को देखते ही मार दो। स्केच: संदीप पाल।
चंद्रपति रोते हुए बोली, 'बबली की मां ने हम पर जो अपहरण की FIR दर्ज कराई थी, 12 जून को उस केस में हमको कैथल कोर्ट से जमानत मिली, लेकिन अदालत ने दो दिन बाद 15 जून को मनोज और बबली को बुला भी लिया। कोर्ट ये जानना चाहता था कि बबली अपनी मर्जी से गई है या उसका अपहरण हुआ है।'
15 तारीख को दोनों ने पहले राजौंद थाने में बयान दर्ज कराए। फिर कैथल कोर्ट में बयान दर्ज कराए कि दोनों ने मर्जी से शादी कर ली है। बबली के घरवालों से उन्हें खतरा था, इस पर कोर्ट ने दोनों को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दे दिया। '
चंद्रपति ने आगे बताया, 'मनोज फोन पर बता रहा था कि कोर्ट से निकलते ही पुलिस ने उन्हें कुरुक्षेत्र में पिपली के पास छोड़ दिया। इस बीच बबली के मामा, चाचा कई और लोग उनका पीछा कर रहे थे। जब वो लोग एक बस में बैठे तो इनमें से दो लोग भी उसी बस में बैठ गए। तब मनोज ने पुलिस को फोन करके फिर बुला लिया। पुलिस ने दोनों को इस बस से उतारकर दूसरी बस में बैठा दिया। मनोज का कहना था कि वो दिल्ली जा रहे हैं।'
ये पूरी कहानी सुनते ही DSP के सामने तस्वीर साफ हो गई। मामला एक ही गोत्र में प्रेम संबंधों का था। लड़की के घरवाले तैयार नहीं थे, दोनों ने छिपकर शादी कर ली तो घरवाले शायद उन्हें मारना चाहते थे। हालांकि नारनौंद में मिली लाशें मनोज-बबली की हैं, ये बात अब तक साफ नहीं हो पाई थी। उन्हें तो नारनौंद पुलिस ने लावारिस समझकर जला दिया था।
मनोज और बबली। दोनों ने कोर्ट मैरिज की थी।
DSP ने तुरंत बुटाना थाने में फोन किया और SHO सुभाष को आदेश दिया, ‘इन्हें भेज रहा हूं, FIR दर्ज करिए।’
उसी दिन SHO सुभाष ने IPC की धारा 364 यानी अपहरण करने, 302 यानी कत्ल, 201 यानी सबूत मिटाने, 120-B यानी आपराधिक साजिश रचने की FIR दर्ज कर ली।
पुलिस ने करोड़ा गांव में बबली के घर और रिश्तेदारों के यहां छापे मारे, लेकिन वहां कोई मिला नहीं। हालांकि पुलिस को बबली के चाचा, मामा और मामा के बेटे का मोबाइल नंबर मिल गया।
अब पुलिस ने टोल नाके के ठेकेदार कुलदीप से स्कॉर्पियो का नंबर लिया। नंबर से पता चला कि वो किराए की स्कॉर्पियो थी। उसके मालिक से पूछताछ की। चार दिन बाद पुलिस ने स्कॉर्पियो के ड्राइवर मनदीप को गिरफ्तार कर लिया।
एक हफ्ते बाद बुटाना थाने में खबर आई कि 23 जून को हिसार के नारनौंद थाने में दो लावारिस लाशें मिली थीं। सुनते ही मनोज की मां और बहन हिसार के नारनौंद थाने पहुंचे।
पुलिस ने दोनों डेड बॉडी की तस्वीरें दिखाते हुए कहा कि लाश में कीड़े लग गए थे। देखते ही चंद्रपति माथा-कलेजा पीटने लगी। सीमा ने मनोज को उसकी शर्ट और बबली को उसके पाजेब से पहचान लिया। ये पाजेब मनोज ने ही दी थीं।
SHO चंद्रपति और सीमा को लाशों से मिले कपड़े और बाकी सामान दिखाते हुए। स्केच:संदीप पाल
पुलिस अंतिम संस्कार कर चुकी थी, चंद्रपति और सीमा, मनोज की राख लेकर घर लौट आईं।
इधर, जब मनोज का छोटा भाई मोबाइल रिचार्ज कराने गांव की ही एक दुकान पर गया, तब दुकानदार ने इनकार कर दिया।
बहन सीमा भाई की अस्थियों के लिए मिट्टी का कलश लेने कुम्हार के यहां गई तो वो बोला- 'तेरे घर का हुक्का-पानी बंद है, मैं नहीं दे पाऊंगा।'
सीमा पड़ोस के एक गांव पहुंची और सहेली की मदद से कलश खरीदा। सब्जीवालों ने सब्जी देना भी बंद कर दिया था। ऑटो, जीप वालों ने गाड़ी में बिठाना बंद कर दिया।
गांव में जो भी सीमा और चंद्रपति से मिलता एक ही सलाह देता, केस वापस ले लो, जो हुआ सो हुआ।
लाश की पहचान हो चुकी थी, लेकिन हत्या का कोई चश्मदीद अब तक पुलिस को नहीं मिला था। बिना चश्मदीद के कोर्ट में ये मर्डर साबित कैसे होगा? कातिलों को पुलिस ने कैसे पकड़ा और कैसे सुलझी मर्डर मिस्ट्री? आगे की कहानी कल यानी रविवार को करनाल डबल मर्डर केस पार्ट-3 में पढ़िए...
पुलिस ने स्कॉर्पियो के ड्राइवर मनदीप को गिरफ्तार कर लिया। उसने पूछताछ में पुलिस को बताया कि 8-10 लोग थे। उन्होंने 1300 रुपए में ये कहते हुए स्कॉर्पियो बुक की थी कि उनके घर की बेटी एक लड़के के साथ भाग गई है उसे पकड़ना है। उन लोगों ने बस रुकवाकर एक लड़के और एक लड़की को उतार लिया। फिर कैथल के करोड़ा गांव की तरफ चल पड़े। वहां एक खेत में मैंने सबको उतार दिया था। पूरी कहानी पढ़िए करनाल डबल मर्डर केस पार्ट-3 में...
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