Mahabharata story related to Ganga: Ganga married King Shantanu but drowned her seven sons in the river | गंगा से जुड़ी महाभारत की कथा: धरती पर आने के बाद गंगा ने राजा शांतनु से किया विवाह लेकिन अपने सात पुत्रों को नदी में बहा दिया | Dainik Bhaskar


The Mahabharata recounts the mystical marriage of Ganga, a goddess, and King Shantanu, and her enigmatic actions of drowning her seven sons.
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गंगा से जुड़ी महाभारत की कथा:धरती पर आने के बाद गंगा ने राजा शांतनु से किया विवाह लेकिन अपने सात पुत्रों को नदी में बहा दिया

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 5 जून को है। इसी तिथि पर गंगा दशहरा मनाते हैं। मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आई थीं। गंगा की महिमा और पृथ्वी पर आगमन से जुड़ी एक रोचक कथा महाभारत में है। यह कथा राजा शांतनु और देवी गंगा के विवाह और उनके रहस्यमय व्यवहार के बारे में बताती है।

आइए जानते हैं यह कथा...

महाभारत की कथा के अनुसार, हस्तिनापुर के राजा शांतनु एक बार गंगा नदी के किनारे घूम रहे थे। वहां उन्होंने एक दिव्य स्त्री को देखा, जो वास्तव में देवी गंगा थीं। राजा शांतनु उनके सौंदर्य पर मोहित हो गए और उनसे विवाह करने की इच्छा जताई।

गंगा ने शांतनु के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार तो किया, लेकिन शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने अनुसार कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए और शांतनु कभी उनके किसी कार्य पर कोई प्रश्न नहीं उठाएंगे या उन्हें रोकेंगे नहीं। जिस दिन शांतनु ने उनकी इस शर्त को तोड़ा, वह उसी क्षण उन्हें छोड़कर चली जाएंगी। राजा शांतनु ने देवी गंगा के प्रेम में उनकी यह कठिन शर्त भी स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह हुआ।

विवाह के कुछ सालों बाद रहस्यमय घटनाक्रम शुरू हुआ जब गंगा ने पहले पुत्र को जन्म दिया। जन्म लेते ही गंगा ने उस बच्चे को नदी में बहा दिया। शांतनु यह देखकर बहुत दुखी हुए, लेकिन अपने वचन के कारण गंगा को ऐसा करने से रोक नहीं पाए। उन्हें डर था कि यदि उन्होंने गंगा को रोका तो वह उन्हें छोड़कर चली जाएंगी।

इसी प्रकार, गंगा ने एक के बाद एक सात पुत्रों को जन्म दिया और उन सभी को बहा दिया। शांतनु हर बार गहरे दुख में डूब जाते, पर मजबूरी के कारण कुछ नहीं कर पाते थे। जब देवी गंगा आठवीं संतान को भी नदी में बहाने के लिए आईं, तो राजा से रहा नहीं गया। उन्होंने दुख और क्रोध से भरकर गंगा को रोकते हुए पूछा कि वह क्यों अपनी ही संतानों को इस तरह नदी में बहा देती हैं?

राजा शांतनु के प्रश्न पर देवी गंगा ने कहा, "हे राजन! आज आपने अपनी संतान के मोह में मेरी शर्त तोड़ दी है। अब मैं आपके साथ नहीं रह सकती। हालांकि, आपकी यह आठवीं संतान जीवित रहेगी और यही आपके वंश को आगे बढ़ाएगा।" इतना कहकर देवी गंगा अपने उस पुत्र को शांतनु को सौंपकर अंतर्धान हो गईं।

शांतनु ने पुत्र को बचा तो लिया, लेकिन उसे अच्छी शिक्षा और पालन-पोषण के लिए कुछ सालों तक गंगा के साथ छोड़ दिया। उस बच्चे का नाम देवव्रत रखा। जब देवव्रत पराक्रमी योद्धा और धर्म का ज्ञाता बनकर लौटा, तो गंगा उसे राजा शांतनु के पास वापस ले आईं।

पुत्र के लिए राजा शांतनु ने गंगा जैसी देवी का त्याग स्वीकार किया और उसी पुत्र को अपने से दूर भी रखा। यही देवव्रत भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भीष्म ने ही अपने पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से करवाने के लिए पूरी जिंदगी अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की थी और अपने पिता के वंश की रक्षा के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

गंगा दशहरा के दिन इस कथा का स्मरण मां गंगा के महत्व और उनके द्वारा किए गए त्याग को दर्शाता है। यह पर्व हमें रिश्तों की जटिलताओं और वचनों के पालन के महत्व को भी समझने की प्रेरणा देता है

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